चंद्रमा की वजह से जब सूर्य ढकता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब सूर्य का एक हिस्सा ढक जाता है तो इस स्थिति को आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब कुछ समय के लिए सूर्य पूर्ण रूप से चंद्रमा से ढक जाता है तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है। सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या दे दिन ही होता है।
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ग्रहण के इस प्रकार के दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढंक नहीं पाता है, और उसका केवल कुछ हिस्सा दिखाई देता है. वहीं पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में हो और इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाता
सूर्य ग्रहण के दौरान पशु-पक्षी कंफ्यूज हो जाते हैं और सोने की तैयारी शुरू करने लगते हैं। सूर्य ग्रहण के समय धरती पर पड़ने वाली परछाईं की अधिकतम चौड़ाई 167 मील हो सकती है। हर सूर्य ग्रहण पड़ने पर धरती की घुर्णन गति में 0.001 सेकेंड प्रति दशक की कमी होती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण अधिकतम 7.5 मिनट तक का हो सकता है।
खगोलीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण सूर्य ग्रहण का काफी महत्व माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण के घंटे पहले से सूतक काल शुरू हो जाता है और सूतक काल और ग्रहण के दौरान भोजन करने की मनाही रहती है. ज्योतिष के अनुसार ग्रहण काल के दौरान कुछ राशियों पर शुभ और कुछ पर अशुभ प्रभाव पड़ता है
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पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी तीनों एक सीध में आ जाते हैं और इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है, तो इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है. वलयाकार सूर्यग्रहण: जब ग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को इस प्रकार से ढंकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है.
व्यक्ति को, खाना-पीना, सोना, नाख़ून काटना, भोजन बनाना, तेल लगाना, बाल काटना अथवा कटवाना, निद्रा मैथुन आदि कार्य...
बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए। सूतक काल में सभी मंदिरों के पट बंद हो गए हैं। ऐसे में कोई दार्मिक कार्य नहीं कियाजा सकता है। ग्रहण काल में भोजन अशुद्ध हो जाता है।
इस छाया में दो भाग होते हैं: गर्भ, एक शंकु जिसमें कोई प्रत्यक्ष सूर्य का प्रकाश प्रवेश नहीं करता है; और पेनम्ब्रा, जो सूर्य की डिस्क के केवल एक हिस्से से प्रकाश द्वारा पहुंचा जाता है ।
आंशिक सूर्य ग्रहण में चांद जब पृथ्वी के एक हिस्से को पूरी तरह से ढक देता है तब आंशिक सूर्य ग्रहण लगता है। इसमें चंद्रमा की परछाई पूरे हिस्से को न ढकते हुए पृथ्वी के केवल एक ही हिस्से को ढकता है। आशिंक सूर्य ग्रहण के अलावा दो और सूर्य ग्रहण है पूर्ण सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण।
भारत में सूर्य ग्रहण शाम 4 बजकर 29 मिनट से शुरू होगा और शाम 6 बजकर 9 मिनट पर खत्म होगा। Surya Grahan 2022 Date Time in India: भारत में मंगलवार को सूर्य ग्रहण ( Solar Eclipse ) का अद्भुत नजारा दिखा। देश में सूर्य ग्रहण शाम 4 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर बजकर 9 मिनट तक चला।
तिथि- 30 अप्रैल 2022 को साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। समय- मध्य रात्रि 12 बजकर 15 मिनट से शुरू होगा और सुबह 4 बजकर 7 मिनट तक रहेगा। साल का पहला सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इसके अलावा ये ग्रहण दक्षिण अमेरिका का दक्षिण-पश्चिमी भाग, अटलांटिक, अंटार्कटिका और प्रशांत महासागर में दिखाई देगा।
पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने हो वहाँ दिन होगा इसी समय पृथ्वी के पीछे वाले भाग में रात होगी। सूर्य ग्रहण प्रदर्शन हेतु प्रयोग- जब सूर्य एवं पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो सूर्य की रोशनी चन्द्रमा पर पड़ती है और चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। पृथ्वी के ऐसे भाग में अंधेरा छा जाता है।
सूर्य ग्रहण 2022 कब से होगा शुरू? साल का दूसरा सूर्य ग्रहण आज मंगलवार, 25 अक्टूबर को भारतीय समयानुसार, सबसे पहले आइसलैंड में दोपहर 2 बजकर 29 मिनट पर शुरू होगा. यह शाम 6 बजकर 20 मिनट पर अरब सागर में खत्म होगा. साल 2022 का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण आज 25 अक्टूबर, मंगलवार को लग रहा है.
ग्रहण काल में मंत्र जपने के लिए माला की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समय का ही महत्व होता है। ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा:। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।
ॐ ह्रीं नमः'
प्रेमियों या दंपती के बीच प्रेम-संबंध की मधुरता बनी रहे इसके लिए कामदेव के शाबर मंत्र की सहायता से प्रसन्न रखना आवश्यक है। जिसके लिए इस मंत्र का जाप करें।
भगवान शिव का नाम ही समस्त पापों को हर लेता है। हर शिवभक्त हर-हर महादेव का जयकारा बोलता है। इस जयकारे से मन, बुद्धि, विचार, कर्म, वाणी के सारे दोष नष्ट हो जाते हैं। 'शि' का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि 'व' का अर्थ देने वाला यानी दाता।
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वह समय के साथ ही जुड़ा हुआ है, सभी चीजों के विनाशक के रूप में, साथ ही सृजन के साथ जुड़ा हुआ है । विनाश और सृजन का अटूट संबंध है - एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं हो सकता - शिव को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं।
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